लोगों की राय

कहानी संग्रह >> गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

गुप्त धन-1 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :447
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8461
आईएसबीएन :978-1-61301-158

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ

यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला—अगर तू मुसाफ़िर है तो आ मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल ज़मीन है जो मेरे पास बाक़ी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफ़सोस है कि तू यहाँ ऐसे वक़्त में आया जब हम तेरा आतिथ्य-सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक़्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया कि राजपूत देश के लिए कैसी बहादुरी से जान देता है। यह आस-पास जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की हैं, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गो कि मैं बेवतन हूँ, मगर ग़नीमत है कि दुश्मन की ज़मीन पर मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया ? खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फायदा ? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए ज़िन्दा रहूँ ? नहीं, ऐसी ज़िन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।

कथाक्रम

1. दुनिया का सबसे अनमोल रतन
2. शेख़ मख़मूर
3. शोक का पुरस्कार
4. सांसारिक प्रेम और देश प्रेम
5. विक्रमादित्य का तेग़ा
6. आख़िरी मंज़िल
7. आल्हा
8. नसीहतों का दफ्तर
9. राजहठ
10. त्रिया चरित्र
11. मिलाप
12. मनावन
13. अंधेर
14. सिर्फ़ एक आवाज़
15. नेकी
16. बाँका जमींदार
17. अनाथ लड़की
18. कर्मों का फल
19. अमृत
20. अपनी करनी
21. ग़ैरत की कटार
22. घमण्ड का पुतला
23. विजय
24. वफा का खंजर
25. मुबारक बीमारी
26. वासना की कड़ियाँ

Next...

प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book